बुधवार, 27 नवंबर 2019

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत(Theory of cognitive development of jean piaget) in hindi

प्रवर्तक –  इस सिद्धांत के प्रतिपादक जीन पियाजे ,स्विट्जरलैंड के निवासी थे। जीन पियागेट एक स्विस मनोवैज्ञानिक और आनुवंशिक एपिस्टेमोलॉजिस्ट थे। वह सबसे अधिक संज्ञानात्मक विकास के अपने सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध है जो इस बात पर ध्यान देता है कि बचपन के दौरान बच्चे बौद्धिक रूप से कैसे विकसित होते हैं।

पियागेट के सिद्धांत से पहले, बच्चों को अक्सर केवल मिनी-वयस्कों के रूप में सोचा जाता था। इसके बजाय, पियागेट ने सुझाव दिया कि जिस तरह से बच्चे सोचते हैं, वह उस तरह से अलग है, जिस तरह से वयस्क सोचते हैं।

उनके सिद्धांत का मनोविज्ञान के भीतर एक विशिष्ट उपक्षेत्र के रूप में विकासात्मक मनोविज्ञान के उद्भव पर जबरदस्त प्रभाव था और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया। उन्हें रचनावादी सिद्धांत के एक अग्रणी के रूप में भी श्रेय दिया जाता है, जो बताता है कि लोग अपने विचारों और अपने अनुभवों के बीच की बातचीत के आधार पर सक्रिय रूप से दुनिया के अपने ज्ञान का निर्माण करते हैं।

2002 के एक सर्वेक्षण में पियागेट को बीसवीं शताब्दी के दूसरे सबसे प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक के रूप में स्थान दिया गया था।

Jean Piaget cognitiue development theory facts:

             Jean Piaget
    • सर्वप्रथम संज्ञानात्मक पक्ष का क्रमबद्ध व वैज्ञानिक अध्ययन स्विट्जरलैंड के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे के द्वारा किया गया।
    • संज्ञान- प्राणी का वह व्यापक और स्थाई ज्ञान है जिससे वह वातावरण/ उद्दीपक जगत/  बाह्य जगत के माध्यम से ग्रहण करता है। 
    • समस्या समाधान, समप्रत्ययीकरर्ण ( विचारों का निर्माण), प्रत्येकक्षण( देखकर सीखना) आदि मानसिक क्रियाएं सम्मिलित होती है। यह क्रियाएं परस्पर अंतर संबंधित होती हैं।
    • जीन पियाजे का संज्ञानात्मक पक्ष पर बल देते हुए संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत का प्रतिपादन किया था इसीलिए जीन पियाजे को  विकासात्मक मनोविज्ञान का जनक कहा जाता है।
    • विकासात्मक मनोविज्ञान के अंतर्गत शुरू से अंत तक अर्थात गर्भावस्था से वृद्धावस्था तक का अध्ययन किया जाता है
    • विकास प्रारंभ होता है – गर्भावस्था से
    • संज्ञान विकास – शैशवअवस्था से प्रारंभ होकर जीवन पर्यंत चलता रहता है। 
    • जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत को  कितनी अवस्थाओं में समझाया है। –  4
  1.  संवेदी पेशीय अवस्था/ इंद्रिय जनित अवस्था – 0  से 2 वर्ष

  • जन्म के समय शिशु वाह जगत के प्रति अनभिज्ञ होता है धीरे-धीरे व आयु के साथ साथ अपनी संवेदनाएं वह शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से बाय जगत का ज्ञान ग्रहण करता है
  • वह वस्तुओं को देखकर सुनकर स्पर्श करके गंध के द्वारा तथा स्वाद के माध्यम से ज्ञान ग्रहण करता है
  • छोटे छोटे शब्दों को  बोलने लगता है
  • परिचितों का मुस्कान के साथ स्वागत करता है तथा आप परिचितों को देख कर भय का प्रदर्शन करता है

2 . पूर्व सक्रियात्मक अवस्था :   2 से 7 वर्ष

  • अवस्था में दूसरे के संपर्क में खिलौनों से अनुकरण के माध्यम से सीखता है
  • खिलौनों की आयु इसी अवस्था को कहा जाता है
  • शिशु, गिनती गिनना रंगों को पहचानना वस्तुओं को क्रम से रखना हल्के भारी का ज्ञान होना
  • माता पिता की आज्ञा मानना, पूछने पर नाम बताना घर के छोटे छोटे कार्यों में मदद करना आदि सीख जाता है लेकिन वह तर्क वितर्क करने योग्य नहीं होता इसीलिए इसे आतार्किक चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है
  • वस्तु स्थायित्व का भाव जागृत हो जाता है
  • निर्जीव वस्तुओं में संजीव चिंतन करने लगता है इसे  जीव वाद कहते हैं
  • प्रतीकात्मक सोच पाई जाती है
  • अनुकरण शीलता पाई जाती है
  • शिशु अहम वादी होता है तथा दूसरों को कम महत्व देता है


3 . स्थूल / मूर्त संक्रिया त्मक अवस्था: 7  से 12 वर्ष

  • इस अवस्था में तार्किक चिंतन प्रारंभ हो जाता है लेकिन बालक का चिंतन केवल मुहूर्त प्रत्यक्ष वस्तुओं तक ही सीमित रहता है
  • वह अपने सामने उपस्थित दो वस्तुओं के बीच तुलना करना,  अंतर करना, समानता व असमानता बतलाना, सही गलत व उचित अनुचित में विविध करना आदि सीख जाता है
  • इसीलिए इसे मूर्त चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है
  • बालक दिन, तारीख, समय, महीना, वर्ष आदि बताने योग्य हो जाता है
  • उत्क्रमणीय शीलता पाई जाती है इसीलिए इसे पलावटी  अवस्था के नाम से भी जाना जाता है
  • भाषा एवं संप्रेषण योग्यता का विकास की अवस्था में हो जाता है

4 औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था : 12  वर्ष के बाद

  • इस अवस्था में किशोर मूर्ति के साथ साथ अमूर्त चिंतन करने योग्य भी हो जाता है
  • इसीलिए इसे तार्किक चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है
  • इस अवस्था में मानसिक योग्यताओं का पूर्ण विकास हो जाता है
  • इस अवस्था में परीकल्पनात्मक चिंतन पाया जाता है

जीन पियाजे का शिक्षा में योगदान:

  • जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत का प्रतिपादन किया। 
  • बाल केंद्रित शिक्षा पर बल दिया। 
  • जीन पियाजे ने शिक्षण में शिक्षक की भूमिका को महत्वपूर्ण  बताते हुए कहा कि-

1  शिक्षक को बालक की समस्या का निदान करना चाहिए।

2  बालकों के अधिगम के लिए उचित वातावरण तैयार करना चाहिए। 

  • जीन पियाजे ने बुद्धि को जीव विज्ञान के ‘स्कीमा’ की भांति बदला कर बुद्धि की एक नवीन व्याख्या प्रस्तुत की
  • जीन पियाजे ने आत्मीय करण, समंजन, संतुलितनी करण, व स्कीमा आज ऐसी नवीन शब्दों का प्रयोग कर शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • ” स्कीमा”  – वातावरण द्वारा अर्जित संपूर्ण ज्ञान का संगठन  ही स्कीमा है 
  • संरचना की  व्यवहार गत समानांतर प्रक्रिया जीव विज्ञान में इसकी मां कहलाती है अर्थात किसी उद्दीपक के प्रति विश्वसनीय अनुप्रिया को स्कीमा कहते हैं।

# जीन पियाजे की  संज्ञानात्मक सिद्धांत से संबंधित अति महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर इस प्रकार है।

  1. जीन पियाजे ने कौन सा सिद्धांत दिया था। –  संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत
  2. पियाजे का संज्ञानात्मक सिद्धांत किससे संबंधित  है। – मानव बुद्धि की प्रकृति एवं उसके विकास से
  3. पियाजे के अनुसार व्यक्ति के किस विकास में उसके जीवन के किस भाग का विशेष योगदान होता है।  – बचपन
  4. पियाजे के सिद्धांत को और किस नाम से भी जाना जाता है। – विकास अवस्था सिद्धांत
  5. यह सिद्धांत किस की प्रकृति के बारे में बतलाता है। –   ज्ञान की कैसे प्राप्त व उपयोग होता है
  6. विकासात्मक सिद्धांत क्या है।  – पियाजे का संज्ञानात्मक सिद्धांत
  7. संज्ञानात्मक विकास की कितनी अवस्थाएं होती हैं।  –  4
  8. संज्ञानात्मक विकास की कौन-कौन सी अवस्थाएं होती हैl 

(a)  संवेदी पेशीय अवस्था(Sensor motor) – 0 से 2

(b)  पूर्व क्रियात्मक अवस्था(Pre-operation) – 2  से 7

(c)  अमूर्त संक्रियाएंत्मक(Cocrete operation) – 7  से 11

(d)  मूर्त संक्रियाआत्मक (Formal operation ) – 11  से 18

9.संवेदी पेशीय अवस्था को कितने भागों में बांटा गया है। – 6

1  सह क्रिया अवस्था

2  प्रमुख वित्तीय अनुप्रिया ओं की अवस्था

3  गौर्ण वृत्तीय अनु क्रियाओं की अवस्था

4 गौर्ण सिकमेटा की समन्वय की अवस्था

5  तृतीय वृत्तीय अनु क्रियाओं की अवस्था

6  मानसिक सहयोग द्वारा नए साधनों की खोज की अवस्था

10. पूर्व संक्रिया अवस्था में प्रकट होने वाले लक्षण को कितने प्रकार में  विभाजित किया गया है।

दो – 1.  पूर्व प्रत्यात्मक काल-  2 से 4 वर्ष

       2. अंतःप्रत्यात्मक  काल – 4 से 7 वर्ष

11. इस नियम के अनुसार बालक किसके साथ अनुकूलन करने के लिए अनेक नियमों को सीख लेता है  – पर्यावरण के साथ

12. तार्किक चिंतन की क्षमता का विकास किस अवस्था में होता है।  –  औपचारिक या अमूर्त संक्रिया तमक अवस्था

13. पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया में मुख्यतः किन दो बातों को महत्व पूर्ण नाम माना है। –  संगठन व अनुकूलन

14. संगठन, व्यक्ति एवं वातावरण के संबंध को किस प्रकार से प्रभावित करता है –  आंतरिक रुप से

15. व्यक्ति व वातावरण के संबंध को कौन सा वाह्य  रूप में प्रभावित करता है –  अनुकूलन

16. समस्या समाधान की क्षमता का विकास किस अवस्था में होता है। –  अमूर्त/ औपचारिक संघ क्रियात्मक अवस्था

17. बुद्धि में विभिन्न ने प्रक्रिया है जैसे प्रत्यक्षीकरण, स्मृति, चिन्ह एवं तर्क सभी संगठित होकर कार्य करती है, इसका  तात्पर्य किससे है। – संगठन से

18. जीन पियाजे कौन थे। –  स्विजरलैंड की एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सक

19. जीन पियाजे का जन्म कब हुआ। –  9 अगस्त 1896

20. इनकी मृत्यु कब हुई। –  16 सितंबर 1980 (उम्र 84)

21. जीन पियाजे की प्रसिद्धि का प्रमुख कारण क्या था। –  बाल विकास पर किए गए कार्य

22.पियाजे का सिद्धांत किस पद्धति से सीखने पर बल देता है। –  खोज पद्धति से

23.बाहरी सत्ता के आधार पर नैतिक चिंतन करने वाले बच्चे किस धारणा में विश्वास करते हैं।  – तुरंत न्याय

24. जीन पियाजे ने किस उम्र के बच्चों का अवलोकन और साक्षात्कार किया था।  – 4 से 12 वर्ष

25.पियाजे के अनुसार 10 वर्ष या उससे बड़े उम्र के बच्चे किस प्रकार की नैतिकता प्रदर्शित करते हैं।  – स्वतंत्रता आधारित नैतिकता 

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