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शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

UPTET CTETबालकों के अध्ययन सम्बंधी विकार

बालकों के अध्ययन सम्बंधी विकार

बालकों के सीखने के लिये अध्ययन एक आवश्यक प्रक्रिया हैǀ लेकिन चूंकि सभी बालकों में व्यक्तिगत भेद पाये जाते हैं अत: सभी बालकों के पढने-लिखने, समझने तथा याद करने आदि क्रियाओं का स्तर एक जैसा नहीं होता हैǀ इसका प्रमुख कारण है उनके व्यक्तिगत गुण एवं दोषǀ हम अक्सर अपने बच्चों की आवश्यकताओं और क्षमताओं को समझे बिना बस एक ही अपेक्षा रखते हैं कि वह अव्वल आयेǀ लेकिन ऐसा नहीं होना चाहियेǀ आइये जानते हैं कि वे कौनसे कारण है जो किसी बच्चे के पिछडेपन का कारण बन सकते हैं =>

1. डिस्लेक्सिया (Dyslexia) – यह एक प्रकार का मानसिक विकार है जो दृश्य संवेदनाओं के असुंतलन से सम्बंधित हैǀ इससे ग्रसित बालक अक्सर वर्तनी सम्बंधी त्रुटियां करते हैंǀ वे 'TEN' और 'NET' 'DOG' और 'GOD' आदि में अंतर करने में भी कठिनाई अनुभव करते हैंǀ अर्थात पढने से संबंधित अक्षमता को ही डिस्लेक्सिया कहा जाता हैǀ


इसके लक्षण निम्नानुसार हैं –


1. पहले/बाद में, बांये/ दांये, आदि के भेद को समझने में दिक्कत
2. वर्णमाला सीखने में कठिनाई
3. शब्दों या नामों को याद रखने में कठिनाई
4. तुकबंदी वाले शब्दों को पहचानने या बनाने, तथा शब्दों के सिलेबल्स (शब्दांश) की गिनती में दिक्कत (ध्वनि जागरूकता)
5. शब्दों की ध्वनियों को सुनने या जोड़-तोड़ करने में कठिनाई (फोनेमिक जागरूकता)
6. शब्द की विभिन्न ध्वनियों में अंतर करने में कठिनाई (श्रवण भेदभाव)
7. अक्षरों के ध्वनियों को सीखने में दिक्कत
8. शब्दों का उनके सही अर्थ के साथ संबंध बिठाने में कठिनाई
9. समय बोध और समय के कांसेप्ट को समझने में कठिनाई
10. शब्दों के संयोजन को समझने में दिक्कत
11. गलत बोलने के डर से, कुछ बच्चे अंतर्मुखी और शर्मीले बन जाते हैं और कुछ बच्चे अपने सामाजिक परिपेक्ष्य तथा वातावरण को ठीक से न समझ पाने के कारण दबंग (धौंस दिखने वाला) बन जाते हैं


2. डिस्केल्कुलिया (Dyscalculia) – इस विकार में बालक गणितीय त्रुटियां करते हैंǀ जैसे कि 9X3 को 6X3 या 9+3 अथवा 6+3 समझनाǀ इस कारण से भले ही ये बालक पहाडों और विभाजकता के नियमों को जानते हों लेकिन चिह्नों की एवं संख्याओं की त्रुटि के कारण सवाल हल करने पर त्रुटिपूर्ण उत्तर देते हैंǀ इस प्रकार गणित से सम्बंधित समस्यायें डिस्केलकुलिया के कारण उत्पन्न हो जाती हैंǀ

3. डिस्ग्राफिया (Dysgraphia) – यह डिस्लेक्सिया जैसा ही है लेकिन यह लिखने में त्रुटियों से संबंधित हैǀ डिस्ग्राफिया से ग्रस्त बालक अक्सर निम्न प्रकार की गलतियां करते हैं :
# ऐसा हस्तलेख जो पढा न जा सके
# लिखते समय तेज आवाज में बोलना
# वर्णों का आकार बनाने में कठिनाई
# पूर्व में लिखे हुये शब्दों/ पंक्तियों को याद रखने में कठिनाई
# व्याकरण तथा वर्तनी संबंधी त्रुटियां

4. डिस्प्रेक्सिया (Dyspraxia) – डिस्प्राक्सिया एक विकासात्मक विकार हैǀ इसे भद्दा / बेढंगा / अनाडी बालक सिंड्रोम (clumsy child syndrome) भी कहते हैं ǀ इसके निम्नलिखित लक्षण होते हैं –
§ सामान्य कौशलों की कमी के कारण शीघ्र ही हताश हो जाना
§ कमजोर याददाश्ती, विशेषकर लघु-आवधिक स्मृति (Short term memory) [गजनी के आमिर की तरह]
§ वाणी तथा विचारों में तारतम्यता का अभाव
मनोदैहिक गतिविधियों पर अनियंत्रण

5. डिस्फेजिया – डिस्फेजिया से ग्रस्त बालक भाषा को बोलने, सुनने तथा लिखने में समस्या प्रदर्शित करते हैंǀ


6. अग्रेफिया – यह डिस्फेजिया के जैसा ही है, लेकिन इससे ग्रस्त बालक द्वितीय भाषा के प्रति अक्षमता प्रदर्शित करते हैंǀ


7. अफेजिया – मौखिक रूप से सीखने की अक्षमता को अफेजिया कहा जाता हैǀ

8. हाइपोटोनिया – इसे फ्लोपी बेबी (Floppy Baby) सिंड्रोम भी कहा जाता हैǀ इससे ग्रस्त बच्चों के मस्तिष्क के संकेतों का अनुसरण मांसपेशियों द्वारा ठीक तरह से नहीं हो पाता हैǀ ऐसे बालक ढीले-ढाले बैठे रहते हैंǀ

बुधवार, 27 नवंबर 2019

बाल विकास से संबंधित महत्वपूर्ण परिभाषाएं CTET,TET,UPTET

बाल विकास(child development):

बाल विकास क्या है? –  बच्चे के जन्म से लेकर किशोरावस्था के अंत तक उनमें होने वाले जैविक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनो को बाल विकास (या बच्चे का विकास),कहते हैं।” प्रत्येक बच्चे के विकास की विभिन्न अवस्थाएं होती हैं। इन्हीं अवस्थाओं में बच्चों का निश्चित विकास होता है। इसी सीमा का ध्यान रखते हुए विकास को निम्नलिखित वर्णों में विभाजित करने का प्रयास किया गया है।

    1. गर्भावस्था –  गर्भाधान से जन्म तक।
    2. शैशवावस्था – जन्म से 5 वर्ष तक।
    3. बाल्यावस्था- 5 वर्ष से 12 वर्ष तक।
    4. किशोरावस्था-  12 से 18 वर्ष तक।
    5. युवावस्था-  18 से 25 वर्ष तक।
    6. प्रौढ़ावस्था-  25 से 55 वर्ष तक।
    7. वृद्धावस्था –  55 वर्ष से मृत्यु तक।

परिभाषाएं(Definition):

 शैशवावस्था,  बाल्यावस्था एवं किशोर अवस्था से संबंधित विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई महत्वपूर्ण परिभाषाएं।

1.शैशवावस्था(0-5 वर्ष) से संबंधित महत्वपूर्ण परिभाषाएं (Important definitions related to infancy (0-5 years)):
फ्राइड के अनुसार : ” बालक को जो बनना होता है वह प्रारंभिक 4 से 5 वर्षों में बन जाता है”

वैलेंटाइन  के अनुसार : “शैशवावस्था को सीखने का आदर्श काल कहा है”

वाटसन के अनुसार : “शैशवावस्था में जो सीखने की सीमा तथा सीखने की तीव्रता है वह और किसी अन्य अवस्था में बहुत तीव्र होती है”

क्रो एवं क्रो के अनुसार :  “बीसवीं शताब्दी को बालक की शताब्दी कहां है “

थार्नडाइक के अनुसार : “3-6वर्ष का बालक  अर्धस्वप्न में रहता है”

2.बाल्यावस्था(6-12 वर्ष)  से संबंधित महत्वपूर्ण परिभाषाएं (Important definitions related to childhood (6-12 years)):
कोल एवं ब्रस  के अनुसार: ” बाल्यावस्था संवेगात्मक विकास का अनोखा काल है”रॉस के अनुसार : ” बाल्यावस्था  को मिथ्या परिपक्वता कहां है”

किलपैट्रिक के अनुसार : ” बाल्यावस्था प्रतिद्वदात्मक अवस्था है”

 फ्राइड के अनुसार : “बाल्यावस्था जीवन निर्माण का काल है”

3. किशोरावस्था(12-18 वर्ष) से संबंधित महत्वपूर्ण परिभाषाएं (Important definitions related to adolescence (12-18 years)):
किलपैट्रिक के अनुसार: ” इसमें कोई मतभेद नहीं है कि किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है” वैलेंटाइन के अनुसार ; ” किशोरावस्था अपराध प्रवृति का नाजुक समय है”

रॉस  के अनुसार : ” किशोरावस्था शैशवावस्था की पुनरावृत्ति है”

कॉल सैनिक के अनुसार : ” किशोर अवस्था में किशोर प्रौढ़ को अपने मार्ग में बाधक मानते हैं”

स्टेनले हॉल के अनुसार : ” किशोरावस्था  को बड़े संघर्ष, तनाव तथा आंधी तूफान की अवस्था कहा जाता है”

Types of Child Development:

इस समय अधिकतर विद्वान मानव विकास का अध्ययन निम्नलिखित चार अवस्थाओं के अंतर्गत करते हैं.

1.शैशवावस्था –  जन्म से 6 वर्ष तक

2.बाल्यावस्था – 6 से 12 वर्ष तक

3.किशोरावस्था –  12 से 18 वर्ष तक

4.प्रौढ़ावस्था  –  18 से मृत्यु तक

                                                           child development stages
1.शैशवावस्था(जन्म से 6 वर्ष तक)
  • इस अवस्था को भावी जीवन की आधारशिला के रूप में देखा जाता है।
  • इस अवस्था में व्यवहार पूरी तरह से मूल प्रवृत्तियों से जुड़ा रहता है जिसकी संतुष्टि वह तुरंत चाहता है।
  • सुख की चाह उसका एकमात्र प्रेरक होता है वह हर कार्य से बचना चाहता है जो उसे कष्ट पहुंचाता है।
सामाजिक लक्षण( अन्य लक्षण):
  • इस अवस्था में शारीरिक विकास तीव्र गति से होता है।
  • शिशु शारीरिक तथा बौद्धिक रूप से अपरिपक्व होता है।
  • शिशु के मानसिक क्रियाओं के अंतर्गत ध्यान, स्मृति, कल्पना, संवेदना, प्रत्यक्षीकरण आदि का विकास तेजी से होता है।
  • शिशु सबसे अधिक और जल्दी अनुकरण विधि से सीखता है।
2.बाल्यावस्था( 6 वर्ष से 12 वर्ष तक):
  • इस अवस्था को मानव विकास का अनोखा काल कहा जाता है ,क्योंकि विकास की दृष्टि से यह एक जटिल अवस्था होती है।
  • इस अवस्था में विभिन्न प्रकार की शारीरिक,  मानसिक, सामाजिक एवं नैतिक परिवर्तन बालक में होते हैं।
  • पूर्व-बाल्याकाल-  पूर्व- बाल्यकाल में बालक तेजी से बढ़ता है।
  • उत्तर-बाल्याकाल – इस बाल्यकाल में बालक के विकास में स्थायित्व आ जाता है।
  • फ्राइड के अनुसार” इस अवस्था में बालक में तनाव की स्थिति समाप्त हो जाती है तथा वह बाहर की दुनिया को समझने लगता है लेकिन वह परिपक्व नहीं होता है”।
  • बाल अवस्था को ही हम(Elementor School Age) या (Smart Age) स्फूर्ति आयु या Dirty Age ( गंदी अवस्था) आदि विभिन्न नामों से जानते हैं ।
सामाजिक लक्षण( अन्य लक्षण):
  • बच्चों को इस अवस्था में रचनात्मक कार्यों में विशेष आनंद की प्राप्ति होती है।
  • रचनात्मक प्रवृत्ति के साथ साथ संग्रहण करने की प्रवृत्ति भी इसी अवस्था में जागृत होती है।
  • इस अवस्था में बच्चों में सामूहिक खेलों में भाग लेने की प्रवृत्ति बहुत ही अधिक विकसित हो जाती है।
3.किशोरावस्था Teen Age ( 12 वर्ष से 18 वर्ष तक):
  • स्टेनली हॉल में इस काल को तूफान एवं परेशानी का काल कहा है।
  • पश्चिमी विद्वानों ने इसे Teen Age  भी कहा है।
  • किशोर अवस्था में किशोर को सही मार्गदर्शन की आवश्यकता रहती है।
  • इसे विकास की सबसे जटिल अवस्था भी कहा जाता है।
  • एक काल में विशेष योन दृष्टि से इस काल में अनेक परिवर्तन होते हैं जिसकी वजह से किशोरों का जीवन तनाव, चिंता, संघर्ष आदि से गिर जाता है।
सामाजिक लक्षण( अन्य लक्षण):
  • इस अवस्था में बच्चों के मस्तिष्क का लगभग सभी दिशाओं में परिवर्तन तीव्रता से होता है।
  • इस अवस्था में बुद्धि, कल्पना एवं तर्कशक्ति पर्याप्त विकसित हो जाती हैं।
  • किशोरावस्था में स्थायित्व और समायोजन का अभाव रहता है उनका मन शिशु के समान स्थिर नहीं होता है वातावरण में समायोजन नहीं कर पाते हैं।
4.प्रौढ़ावस्था(18 से मृत्यु तक):
  • इस अवस्था में किशोर अवस्था धीरे-धीरे ढलता या परिपक्वता की ओर बढ़ती है।
  • इस अवस्था में व्यक्ति दुनिया में प्रवेश करके अपने दायित्वों के प्रति जागरूक हो जाता है।
  • संक्षेप में कहें तो यह आयु ”Teens” की समाप्ति तथा “Twenties”का प्रारंभ है।

शिक्षण कौशल के नोट्स PDF :परिभाषाएं, प्रमुख विधियां एवं महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर(Teaching Skills)

शिक्षण कौशल की परिभाषाएं (Teaching Skills Definition)

डॉक्टर बी के पासी के अनुसार- “शिक्षण कौशल, छात्रों के सीखने के लिए सुगमता प्रदान करने के विचार से संपन्न की गई संबंधित शिक्षण क्रियाओं या व्यवहारिक का समूह है।”

मेकइंटेयर एवं व्हाइट के अनुसार- “शिक्षण कौशल, शिक्षण व्यवहार से संबंधित वह  स्वरूप है ,जो कक्षा की अंतः प्रक्रिया द्वारा उन विशिष्ट परिस्थितियों को जन्म देता है। जो शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होती है और सीखने में सुगमता प्रदान करती है।”

डॉ कुलश्रेष्ठ के अनुसार- ” शिक्षण कौशल शिक्षक की हाथ में वह शस्त्र है। जिसका प्रयोग करके शिक्षक अपनी कक्षा शिक्षण को प्रभावी तथा सक्रिय बनाता है एवं कक्षा की अंतर प्रक्रिया में सुधार लाने का प्रयास करता है।”

शिक्षण कौशल की प्रमुख विशेषताएं (Features of Teaching Skills)

  1. शिक्षण कौशल शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाते हैं।
  2. यह समस्त अंतः क्रिया को सक्रिय बनाते हैं।

3.यह विषय वस्तु को सरल एवं सुगम बनाते हैं।

4.शिक्षण कौशल विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होते हैं।

5.यह शिक्षण प्रक्रिया तथा व्यवहार को संयमित करते हैं।


  

शिक्षण कौशल की प्रमुख विधियां (Major methods of teaching skills)

1.शिक्षण कार्य अवलोकन विधि(Teaching work observation method)

2.साक्षात्कार और विचार विमर्श विधि(Interviews and Discussion Methods)

3.पाठ्यक्रम और उद्देश्य विश्लेषण विधि(Course and objective analysis method)

4.शिक्षा सम्मति विधि(Law of education)


शिक्षण कौशल से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर (Important questions related to teaching skills)

  • सूक्ष्म- शिक्षण का विकास किसने किया।  – डी.डब्लू.एलेन
  • डॉ.वी.के. पासी ने अपने अध्ययन के आधार पर कितने शिक्षण कौशल की सूची तैयार की थी।– 13
  • शिक्षण कौशल के विकास एवं सुधार की प्रविधि किसे कहा जाता है। –  सूक्ष्म शिक्षण
  • चित्र तथा पोस्टर कौन से साधन/ सामग्री है। –  दृश्य
  • अभिक्रमित अनुदेशन का विकास किसने किया था। –  बी. एफ. स्किनर ने
  • रेखीय विक्रम का प्रतिपादक किसे माना जाता है। –  बी.एफ स्किनर को
  • रेखीय अभिक्रमित अन्य किस नाम से जाना जाता है।  -बाहय अभिक्रम
  • चलचित्र कैसा साधन है। –  दृश्य- श्रव्य
  • ” एजुकेशन टेक्नोलॉजी” शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया था। –  ब्रायनमोर जोंस(1967)
  • शैक्षिक तकनीकी  केंद्र किसने प्रारंभ किया था ।–  NCERT नई दिल्ली
  • आधारभूत शिक्षण प्रतिमान किसके द्वारा दिया गया था। –  रॉबर्ट  ग्लेजर
  • शिक्षण मशीन का निर्माण किसके द्वारा किया गया। –  सिडनी एल  प्रेसी(अमेरिका में 1926)
  • “Technology”शब्द की उत्पत्ति किस किस भाषा से हुई है। – Technikos(कला)
  • शिक्षण प्रतिमान के कितने तत्व होते हैं। –  4(उद्देश्य, संरचना, सामाजिक प्रणाली,मूल्यांकन)
  • साखी अभिक्रम का विकास किसके द्वारा किया गया। -नार्मन ए. क्राउडर
  • एलेन  एवं रेयान  ने सूक्ष्म शिक्षण के कितने कौशल बताए हैं। – 14
  • अभिक्रमित अनुदेशन कितने प्रकार के होते हैं। –  3(रेखीय, शाखीय,मैथेटिक्स)
  • OHP  का पूरा नाम है।-Over Head Projector  (ओवरहेड प्रोजेक्टर)
  • सूक्ष्म शिक्षण में एक समय में कितने शिक्षण कौशल का विकास किया जाता है। – एक
  • भारत में दूरदर्शन सेवा का औपचारिक रूप से उद्घाटन कब हुआ। –  15 सितंबर 1959 ई
  • टेलीकॉन्फ्रेसिंग कितने प्रकार की होती है। –  3( टेलीकॉन्फ्रेसिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, कंप्यूटर कॉन्फ्रेंसिंग)
  • श्रव्य दृश्य सामग्री के उपागम के अंतर्गत आती है। –  हार्डवेयर
  • कठोर शिल्प उपागम का संबंध अनुदेशन के किस पक्ष से होता है। – ज्ञानात्मक
  • खोजपूर्ण प्रश्न पूछने से छात्रों में किस का विकास होता है। –  ज्ञानात्मक
  • किस शिक्षण कौशल के अंतर्गत शिक्षक द्वारा हावभाव एवं अपनी स्थिति को बदला जाता है। -उद्दीपन भिन्नता
  • बोध स्तर के शिक्षण प्रतिमान का प्रतिपादन किसके द्वारा किया गया।  –  बी एस ब्लूम
  • एजर डेल के अनुसार किस प्रकार का अनुभव सबसे स्थाई होता है। –  प्रत्यक्ष अवलोकन
  • शिक्षक की योग्यता एवं आचरण का मूल्यांकन सबसे भली प्रकार कौन करता है। –  छात्र/ शिष्य
  • शिक्षण की समस्याओं को हल करने का दायित्व किस का होता है। –  शिक्षक का
  • विद्यालय परिसर के बाहर एक शिक्षक को अपने छात्र से किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। –  मैत्रीपूर्ण
  • निगमनात्मक शिक्षण प्रविधि किसके अंतर्गत आती है। –  सामान्य से विशिष्ट की ओर
  • अध्यापक के लिए सबसे मूल्यवान वस्तु क्या होती है। –  छात्रों का विश्वास
  • ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के स्कूल से भागने तथा पढ़ाई छोड़ने का क्या कारण होता है। –  नीरज वातावरण
  • भारत में शिक्षित बेरोजगारी का प्रमुख कारण होता है। –  उद्देश्यहीन शिक्षा
  • किस प्रकार का कक्षा नेतृत्व सबसे उत्तम माना गया है। –  लोकतांत्रिक
  • किसी भी विषय वस्तु को छात्रों को सरलता से सिखाने के लिए आवश्यक गुण अध्यापक के लिए कौन सा है। –  प्रभावी अभिव्यक्ति
  • वर्तमान समय में प्राइमरी शिक्षा की दुर्दशा का मुख्य कारण बतलाइए। –  शिक्षक- छात्र विषम अनुपात
  • छोटे बच्चों की शिक्षा देना जरूरी है, लेकिन बच्चों पर कौन सा बोझ नहीं डालना चाहिए। –  गृह
  • जब छात्र उन्नति करते हैं तो उनका अध्यापक कैसा महसूस करता है। –  आत्म संतोष
  • शिक्षा से किस का कल्याण होता है। –  समाज के सभी वर्गों का
  • यह किसने कहा है कि“ शिशु का मस्तिष्क कोरी स्लेट होता है”।–  प्लेटो ने
  • किस विद्वान के द्वारा सीखने के पांच चरण बतलाए गए हैं। –  हरबर्ट स्पेंसर
  • “  किंडरगाटेर्न ” स्कूल सबसे पहले किस देश में खोले गए थे। –  जर्मनी
  • भाषा सीखने का सबसे प्रभावी उपाय है। – वार्तालाप करना
  • नर्सरी स्कूलों की शुरुआत किसने की थी। –  फ्रोबेल
  • कौन सी शिक्षण विधि वास्तविक अनुभवों को प्रदान करने के लिए उत्तम मानी जाती है। –  भ्रमण विधि
  • किस विद्वान के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में” अभिरुचि” को सबसे महत्वपूर्ण तत्व बताया गया है। –  टी पी नन
  • आज के आवासीय स्कूल किस भारतीय पद्धति के समान है। –  गुरुकुल
  • भारत में स्त्री शिक्षा के महान समर्थक कौन थे। –  कार्वे
  • ज्ञान इंद्रियों का प्रशिक्षण किस प्रकार का होता है। –  अभ्यास द्वारा
  • प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रवर्तक थे। –  विलियम जेम्स
  • यह किसने कहा है कि”बच्चों के लिए सबसे उत्तम शिक्षक वह होता है जो स्वयं बालक जैसा हो”। –  मैकेन
  • गणित शिक्षण की कौन सी संप्रेषण रणनीति सर्वाधिक उत्तम उपयुक्त मानी गई है। –  एल्गोरिथ्म
  • एक शिक्षक के घर में किस वस्तु का होना ज्यादा जरूरी है। –  पुस्तकालय
  • किस सिद्धांत द्वारा बालक में रूचि का विकास होता है। –  प्रेरणा का सिद्धांत
  • अधिगम का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत बतलाइए। –  क्रिया का सिद्धांत
  • वैदिक काल में परिवार में विद्या का प्रारंभ करते समय कौन सा संस्कार होता था। –  विद्यारंभ संस्कार( चूड़ाकर्म)
  • शिक्षा की अवधि क्या है। –  500 ईसा पूर्व से 1200 तक

शिक्षण विधियाँ एवं उनके प्रतिपादक/मनोविज्ञान की विधियां,सिद्धांत:

Important Fact:

  • Psychology शब्द का सबसे पहले किसने प्रयोग किया था –  रुडोल्फ गोल काय द्वारा 1590 में
  • विश्व का प्रथम बुद्धि परीक्षण किसके द्वारा किया गया –  1905 में बिने व साइमन द्वारा
  • Psychology शब्द की उत्पत्ति हुई  – Psyche+Logos यूनानी भाषा के दो शब्दों से
  • आधुनिक मनोविज्ञान के प्रथम वैज्ञानिक है –  डेकाटे
  • Psychology की प्रथम पुस्तक Psychology  किसने लिखी – रुडोल्फ गालकाय
  • विश्व की प्रथम ‘Psychology Lab ‘ कब तथा किसके द्वारा स्थापित की गई  – 1879 में विलियम द्वारा जर्मनी में स्थापित
  • भारत का प्रथम बुद्धि परीक्षण किया गया – 1922 में सी. एच.  राइस द्वारा
  • आधुनिक मनोविज्ञान के जनक माने जाते हैं –  विलियम जेम्स
  • किंडरगार्टन विधि के प्रतिपादक  है – फ्रोबेल
  • संख्यात्मक आंदोलन के जनक है –  अल्बर्ट बंडूरा

शिक्षण विधियाँ एवं उनके प्रतिपादक :

क्र

शिक्षण विधियां

प्रतिपादक

1. किंडर गार्डन फ्रोबेल
2. मांटेसरी विधि मारिया मांटेसरी
3. खेल विधि के हेनरी कोल्डवेल कुक
4. डाल्टन विधि हेलन पार्कहर्स्ट
5. पर्यटन विधि  पेस्टोलॉजी
6. खोज विधि (ह्यूरिस्टिक विधि या अन्वेषण विधि)   आर्मस्ट्रांग
7. प्रश्नोत्तर विधि सुकरात
8. प्रोजेक्ट विधि के प्रतिपादक हैं विलियम हेनरी किलपैट्रिक
9. वैज्ञानिक विधि   गुडवार स्केट्स
10. समस्या समाधान विधि सुकरात
11 सूक्ष्म शिक्षण विधि   राबर्ट
12 मूल्यांकन विधि जे .एम राइस
13 समस्या समाधान विधि सुकरात
14 इकाई उपागम एच. सी मॉरीसन
15 विनेटिका  विधि कार्लटन बाशबर्न
16 ड्रेकाली शिक्षण विधि ड्रेकाली
17 ब्रेल पद्धति लुई ब्रेल
18 प्रक्रिया  विधि  कमेनियस
19 बेसिक शिक्षा पद्धति महात्मा गांधी
20 समाजमिति विधि एल.   मोरेनो
21 आगमन विधि अरस्तु
22 निगमन विधि प्लेटो
23 हरबर्ट विधि हरबर्ट
24 प्रश्नावली विधि बुडबर्थ
25 संवाद विधि प्लेटो
26 रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन विधि या बाहय  अनुदेशन विधि बी.  एफ. स्किनर
27 शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन विधि या आंतरिक अनुदेशन विधि  नॉर्मन ए. क्राउडर
28 अवरोही अभिक्रमित अनुदेशन  थामस एफ.  गिलबर्ट

मनोविज्ञान की विधियां,सिद्धांत और उनके प्रतिपादक:

मनोवैज्ञानिक के विभिन्न सिद्धांत संप्रदाय और उनके जनक इस प्रकार हैं

  1. गोल्टनवाद (1912) – कोहलर, कोफ्का , वर्दीमर  व लेविन
  2. संरचनावाद (1879)  – विलियम वुट
  3. व्यवहारवाद (1912) – जे. बी. वाटसन
  4. मनोविश्लेषणवाद(1900)  – सिगमंड फ्रायड
  5. विकासात्मक/ संख्यात्मक  – जीन पियाजे
  • सामाजिक अधिगम सिद्धांत (1986) – अल्बर्ट बंडूरा
  1. संबंधबाद (1913)  – थार्नडाइक
  2. अनुकूलित अनुप्रिया सिद्धांत (1904) – पावलव
  3. क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत 1938 – स्केनर
  4. प्रबलन पुनर्बलन सिद्धांत 1915 – हल
  5. अंतर्दृष्टि/ सुझ सिद्धांत 1912 – कोहलरओवर
  • व्यक्तिगत मापन की प्रमुख लक्ष्य की विधियां इस प्रकार है
  1. प्रासंगिक अंतर बोर्ड परीक्षण (T.A.T)
  2. बाल अंतर्विरोध परीक्षण(C.A.T)
  3. स्याही धब्बा परीक्षण(I.B.T)
  4. वाक्य पूर्ति परीक्षण(S.C.T)
  • व्यक्तिगत मापन की प्रमुख  अप्रक्षेपी विधियां इस प्रकार है
  1. अनुसूची
  2. प्रश्नावली
  3. साक्षात्कार
  4. आत्मकथा विधि
  5. व्यक्तिगत इतिहास विधि
  6.  निरीक्षण विधि
  7. सामाजिक नीति विधि
  8. स्वप्न विश्लेषण
  9. मानदंड मूल्यांकन विधि
  10. स्वतंत्र साहचर्य परीक्षण (F.W.A.T)
  • बुद्धि के सिद्धांत और उनके प्रतिपादक
  1. एक खंड का/ निरंकुश वादी सिद्धांत 1911 – विनय,  टरमन व स्टनर
  2.  द्वी खंड का सिद्धांत 1904 –  स्पीयर मैन
  3. तीन खंड का सिद्धांत –  स्पीयर मैन
  4.  बहु खंड का सिद्धांत – थार्नडाइक
  5. समूह कारक सिद्धांत – थर्स्टन व कैली  
  • बुद्धि लब्धि(I.Q)  ज्ञात करने के सूत्र इस प्रकार है
  1. (I.Q)बुद्धि लब्धि= मानसिक आयु(M.A)/ वास्तविक आयु   (C.A) x 100)
  2. बुद्धि लब्धि(I.Q) ज्ञात करने का सूत्र किसने प्रतिपादित किया था – विलियम स्टर्न 1912 में
  • मानसिक आयु(Mental Age)शब्द का सर्वप्रथम किसने प्रयोग किया –  बिने 1908
  • वैयाकतिक  भाषात्मक बुद्धि परीक्षण-
  1. साइमन बुद्धि परीक्षण –  विने एवं थियोडर साइमन (1905,1908,1911)
  2. स्टैनफोर्ड बिने स्केल – स्टैनफोर्ड वि. वि . में बिने द्वारा (1916 1937,1960 )
  • वैयाकतिक क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण / परीक्षाएं-
  1. पोर्टियसभूल-भुलैया परीक्षण – एस .डी पोर्टियस (1924)
  2. वैशलर- वैल्यू बुद्धि परीक्षण – डी . वैशलर(1944,1955)
  • सामूहिक भाषात्मक बुद्धि परीक्षण –
  1. आर्मी बीटा परीक्षण – आर्थर  एस. ओटिस (1919)
  2. शिकागो क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण –  6 वर्ष से वयस्कों की बुद्धि का मापन
  • हिंदुस्तानी क्रिया परीक्षण – (1922) सी . एच. राइस

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत(Theory of cognitive development of jean piaget) in hindi

प्रवर्तक –  इस सिद्धांत के प्रतिपादक जीन पियाजे ,स्विट्जरलैंड के निवासी थे। जीन पियागेट एक स्विस मनोवैज्ञानिक और आनुवंशिक एपिस्टेमोलॉजिस्ट थे। वह सबसे अधिक संज्ञानात्मक विकास के अपने सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध है जो इस बात पर ध्यान देता है कि बचपन के दौरान बच्चे बौद्धिक रूप से कैसे विकसित होते हैं।

पियागेट के सिद्धांत से पहले, बच्चों को अक्सर केवल मिनी-वयस्कों के रूप में सोचा जाता था। इसके बजाय, पियागेट ने सुझाव दिया कि जिस तरह से बच्चे सोचते हैं, वह उस तरह से अलग है, जिस तरह से वयस्क सोचते हैं।

उनके सिद्धांत का मनोविज्ञान के भीतर एक विशिष्ट उपक्षेत्र के रूप में विकासात्मक मनोविज्ञान के उद्भव पर जबरदस्त प्रभाव था और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया। उन्हें रचनावादी सिद्धांत के एक अग्रणी के रूप में भी श्रेय दिया जाता है, जो बताता है कि लोग अपने विचारों और अपने अनुभवों के बीच की बातचीत के आधार पर सक्रिय रूप से दुनिया के अपने ज्ञान का निर्माण करते हैं।

2002 के एक सर्वेक्षण में पियागेट को बीसवीं शताब्दी के दूसरे सबसे प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक के रूप में स्थान दिया गया था।

Jean Piaget cognitiue development theory facts:

             Jean Piaget
    • सर्वप्रथम संज्ञानात्मक पक्ष का क्रमबद्ध व वैज्ञानिक अध्ययन स्विट्जरलैंड के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे के द्वारा किया गया।
    • संज्ञान- प्राणी का वह व्यापक और स्थाई ज्ञान है जिससे वह वातावरण/ उद्दीपक जगत/  बाह्य जगत के माध्यम से ग्रहण करता है। 
    • समस्या समाधान, समप्रत्ययीकरर्ण ( विचारों का निर्माण), प्रत्येकक्षण( देखकर सीखना) आदि मानसिक क्रियाएं सम्मिलित होती है। यह क्रियाएं परस्पर अंतर संबंधित होती हैं।
    • जीन पियाजे का संज्ञानात्मक पक्ष पर बल देते हुए संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत का प्रतिपादन किया था इसीलिए जीन पियाजे को  विकासात्मक मनोविज्ञान का जनक कहा जाता है।
    • विकासात्मक मनोविज्ञान के अंतर्गत शुरू से अंत तक अर्थात गर्भावस्था से वृद्धावस्था तक का अध्ययन किया जाता है
    • विकास प्रारंभ होता है – गर्भावस्था से
    • संज्ञान विकास – शैशवअवस्था से प्रारंभ होकर जीवन पर्यंत चलता रहता है। 
    • जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत को  कितनी अवस्थाओं में समझाया है। –  4
  1.  संवेदी पेशीय अवस्था/ इंद्रिय जनित अवस्था – 0  से 2 वर्ष

  • जन्म के समय शिशु वाह जगत के प्रति अनभिज्ञ होता है धीरे-धीरे व आयु के साथ साथ अपनी संवेदनाएं वह शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से बाय जगत का ज्ञान ग्रहण करता है
  • वह वस्तुओं को देखकर सुनकर स्पर्श करके गंध के द्वारा तथा स्वाद के माध्यम से ज्ञान ग्रहण करता है
  • छोटे छोटे शब्दों को  बोलने लगता है
  • परिचितों का मुस्कान के साथ स्वागत करता है तथा आप परिचितों को देख कर भय का प्रदर्शन करता है

2 . पूर्व सक्रियात्मक अवस्था :   2 से 7 वर्ष

  • अवस्था में दूसरे के संपर्क में खिलौनों से अनुकरण के माध्यम से सीखता है
  • खिलौनों की आयु इसी अवस्था को कहा जाता है
  • शिशु, गिनती गिनना रंगों को पहचानना वस्तुओं को क्रम से रखना हल्के भारी का ज्ञान होना
  • माता पिता की आज्ञा मानना, पूछने पर नाम बताना घर के छोटे छोटे कार्यों में मदद करना आदि सीख जाता है लेकिन वह तर्क वितर्क करने योग्य नहीं होता इसीलिए इसे आतार्किक चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है
  • वस्तु स्थायित्व का भाव जागृत हो जाता है
  • निर्जीव वस्तुओं में संजीव चिंतन करने लगता है इसे  जीव वाद कहते हैं
  • प्रतीकात्मक सोच पाई जाती है
  • अनुकरण शीलता पाई जाती है
  • शिशु अहम वादी होता है तथा दूसरों को कम महत्व देता है


3 . स्थूल / मूर्त संक्रिया त्मक अवस्था: 7  से 12 वर्ष

  • इस अवस्था में तार्किक चिंतन प्रारंभ हो जाता है लेकिन बालक का चिंतन केवल मुहूर्त प्रत्यक्ष वस्तुओं तक ही सीमित रहता है
  • वह अपने सामने उपस्थित दो वस्तुओं के बीच तुलना करना,  अंतर करना, समानता व असमानता बतलाना, सही गलत व उचित अनुचित में विविध करना आदि सीख जाता है
  • इसीलिए इसे मूर्त चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है
  • बालक दिन, तारीख, समय, महीना, वर्ष आदि बताने योग्य हो जाता है
  • उत्क्रमणीय शीलता पाई जाती है इसीलिए इसे पलावटी  अवस्था के नाम से भी जाना जाता है
  • भाषा एवं संप्रेषण योग्यता का विकास की अवस्था में हो जाता है

4 औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था : 12  वर्ष के बाद

  • इस अवस्था में किशोर मूर्ति के साथ साथ अमूर्त चिंतन करने योग्य भी हो जाता है
  • इसीलिए इसे तार्किक चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है
  • इस अवस्था में मानसिक योग्यताओं का पूर्ण विकास हो जाता है
  • इस अवस्था में परीकल्पनात्मक चिंतन पाया जाता है

जीन पियाजे का शिक्षा में योगदान:

  • जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत का प्रतिपादन किया। 
  • बाल केंद्रित शिक्षा पर बल दिया। 
  • जीन पियाजे ने शिक्षण में शिक्षक की भूमिका को महत्वपूर्ण  बताते हुए कहा कि-

1  शिक्षक को बालक की समस्या का निदान करना चाहिए।

2  बालकों के अधिगम के लिए उचित वातावरण तैयार करना चाहिए। 

  • जीन पियाजे ने बुद्धि को जीव विज्ञान के ‘स्कीमा’ की भांति बदला कर बुद्धि की एक नवीन व्याख्या प्रस्तुत की
  • जीन पियाजे ने आत्मीय करण, समंजन, संतुलितनी करण, व स्कीमा आज ऐसी नवीन शब्दों का प्रयोग कर शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • ” स्कीमा”  – वातावरण द्वारा अर्जित संपूर्ण ज्ञान का संगठन  ही स्कीमा है 
  • संरचना की  व्यवहार गत समानांतर प्रक्रिया जीव विज्ञान में इसकी मां कहलाती है अर्थात किसी उद्दीपक के प्रति विश्वसनीय अनुप्रिया को स्कीमा कहते हैं।

# जीन पियाजे की  संज्ञानात्मक सिद्धांत से संबंधित अति महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर इस प्रकार है।

  1. जीन पियाजे ने कौन सा सिद्धांत दिया था। –  संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत
  2. पियाजे का संज्ञानात्मक सिद्धांत किससे संबंधित  है। – मानव बुद्धि की प्रकृति एवं उसके विकास से
  3. पियाजे के अनुसार व्यक्ति के किस विकास में उसके जीवन के किस भाग का विशेष योगदान होता है।  – बचपन
  4. पियाजे के सिद्धांत को और किस नाम से भी जाना जाता है। – विकास अवस्था सिद्धांत
  5. यह सिद्धांत किस की प्रकृति के बारे में बतलाता है। –   ज्ञान की कैसे प्राप्त व उपयोग होता है
  6. विकासात्मक सिद्धांत क्या है।  – पियाजे का संज्ञानात्मक सिद्धांत
  7. संज्ञानात्मक विकास की कितनी अवस्थाएं होती हैं।  –  4
  8. संज्ञानात्मक विकास की कौन-कौन सी अवस्थाएं होती हैl 

(a)  संवेदी पेशीय अवस्था(Sensor motor) – 0 से 2

(b)  पूर्व क्रियात्मक अवस्था(Pre-operation) – 2  से 7

(c)  अमूर्त संक्रियाएंत्मक(Cocrete operation) – 7  से 11

(d)  मूर्त संक्रियाआत्मक (Formal operation ) – 11  से 18

9.संवेदी पेशीय अवस्था को कितने भागों में बांटा गया है। – 6

1  सह क्रिया अवस्था

2  प्रमुख वित्तीय अनुप्रिया ओं की अवस्था

3  गौर्ण वृत्तीय अनु क्रियाओं की अवस्था

4 गौर्ण सिकमेटा की समन्वय की अवस्था

5  तृतीय वृत्तीय अनु क्रियाओं की अवस्था

6  मानसिक सहयोग द्वारा नए साधनों की खोज की अवस्था

10. पूर्व संक्रिया अवस्था में प्रकट होने वाले लक्षण को कितने प्रकार में  विभाजित किया गया है।

दो – 1.  पूर्व प्रत्यात्मक काल-  2 से 4 वर्ष

       2. अंतःप्रत्यात्मक  काल – 4 से 7 वर्ष

11. इस नियम के अनुसार बालक किसके साथ अनुकूलन करने के लिए अनेक नियमों को सीख लेता है  – पर्यावरण के साथ

12. तार्किक चिंतन की क्षमता का विकास किस अवस्था में होता है।  –  औपचारिक या अमूर्त संक्रिया तमक अवस्था

13. पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया में मुख्यतः किन दो बातों को महत्व पूर्ण नाम माना है। –  संगठन व अनुकूलन

14. संगठन, व्यक्ति एवं वातावरण के संबंध को किस प्रकार से प्रभावित करता है –  आंतरिक रुप से

15. व्यक्ति व वातावरण के संबंध को कौन सा वाह्य  रूप में प्रभावित करता है –  अनुकूलन

16. समस्या समाधान की क्षमता का विकास किस अवस्था में होता है। –  अमूर्त/ औपचारिक संघ क्रियात्मक अवस्था

17. बुद्धि में विभिन्न ने प्रक्रिया है जैसे प्रत्यक्षीकरण, स्मृति, चिन्ह एवं तर्क सभी संगठित होकर कार्य करती है, इसका  तात्पर्य किससे है। – संगठन से

18. जीन पियाजे कौन थे। –  स्विजरलैंड की एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सक

19. जीन पियाजे का जन्म कब हुआ। –  9 अगस्त 1896

20. इनकी मृत्यु कब हुई। –  16 सितंबर 1980 (उम्र 84)

21. जीन पियाजे की प्रसिद्धि का प्रमुख कारण क्या था। –  बाल विकास पर किए गए कार्य

22.पियाजे का सिद्धांत किस पद्धति से सीखने पर बल देता है। –  खोज पद्धति से

23.बाहरी सत्ता के आधार पर नैतिक चिंतन करने वाले बच्चे किस धारणा में विश्वास करते हैं।  – तुरंत न्याय

24. जीन पियाजे ने किस उम्र के बच्चों का अवलोकन और साक्षात्कार किया था।  – 4 से 12 वर्ष

25.पियाजे के अनुसार 10 वर्ष या उससे बड़े उम्र के बच्चे किस प्रकार की नैतिकता प्रदर्शित करते हैं।  – स्वतंत्रता आधारित नैतिकता 

बाल विकास एवं शिक्षा मनोविज्ञान के महत्वपूर्ण सिद्धांत NOTES for Teacher's Exam

क्र.

सिद्धांत

प्रतिपादक

1. आत्म संप्रत्यय की अवधारणा विलियम जेम्स
2. शिक्षा मनोविज्ञान के जनक थार्नडाइक
3. मनोविज्ञान के जनक विलियम जेम्स
4 आधुनिक मनोविज्ञान के जनक विलियम जेम्स
5 प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत थार्नडाइक
6 प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत थार्नडाइक               
7 प्रकार्यवाद संप्रदाय के जनक विलियम जेम्स
8 संयोजनबाद का सिद्धांत थार्नडाइक
9 उद्दीपन- अनुक्रिया का सिद्धांत थार्नडाइक
10 S-R थ्योरी के जन्मदाता थार्नडाइक
11 अभिगमन का बंध सिद्धांत थार्नडाइक
12 संबंध बाद का सिद्धांत थार्नडाइक
13 प्रशिक्षण अंतराल का सर्व सम  अवयव का सिद्धांत थार्नडाइक
14  बहु खंड बुद्धि का सिद्धांत थार्नडाइक
15 बिने -साइमन बुद्धि परीक्षण के प्रतिपादक बिने एवं साइमन
16 बुद्धि परीक्षण के जन्मदाता बिने
17 एक खंड बुद्धि का सिद्धांत बिने
18 दो खंड बुद्धि का सिद्धांत स्पीयरमैन
19 तीन खंड बुद्धि का सिद्धांत स्पीयरमैन
20 सामान्य व  विशिष्ट तत्वों के सिद्धांत के प्रतिपादक स्पीयरमैन       
21 बुद्धि का  द्रवय शक्ति का सिद्धांत स्पीयरमैन
22  त्रि- आयाम बुद्धि का सिद्धांत गिलफोर्ड
23 बुद्धि संरचना का सिद्धांत गिलफोर्ड
24 समूह खंड बुद्धि का सिद्धांत  थर्स्टन
25 युग में तुलनात्मक निर्णय विधि के प्रतिपादक थर्स्टन
26 क्रम वृद्ध अंतराल विधि के प्रतिपादक थर्स्टन
27 समष्टि अंतराल विधि के प्रतिपादक थर्स्टन  व चेव
28 न्यादर्श  या प्रतिदर्श( वर्ग घटक) बुद्धि का सिद्धांत थॉमसन
29 पदानुक्रमिक( क्रमिक महत्व) बुद्धि का सिद्धांत  बर्ट एवं वर्नन
30 तरल- ठोस बुद्धि का सिद्धांत आर.बी केटल
31 प्रतिकारक( विशेषक)  सिद्धांत के प्रतिपादक आर.बी केटल
32 बुद्धि” क” और बुद्धि “खा” के प्रतिपादक हैब
33 बुद्धि इकाई का सिद्धांत   स्टर्न  एवं जॉनसन
34 बुद्धि लब्धि ज्ञात करने के सूत्र के प्रतिपादक विलियम स्टर्न
35 संरचनावाद  संप्रदाय के जनक विलियम वुण्ट
36 प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के जनक विलियम वुण्ट
37 विकासात्मक मनोविज्ञान के प्रतिपादक जीन पियाजे
38 संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत जीन पियाजे
39 मूल प्रवृत्तियों के सिद्धांत के जन्मदाता विलियम  मैकडूगल
40 हार्मिक का सिद्धांत विलियम  मैकडूगल
41 मनोविज्ञान को मन मस्तिष्क का विज्ञान पोंपोलॉजी
42 क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत स्किनर
43 सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांत स्किनर
44 अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धांत इवान पेट्रोविच पावलव
45 संबंध प्रत्यावर्तन का सिद्धांत इवान पेट्रोविच पावलव
46 शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत इवान पेट्रोविच पावलव
47 प्रतिस्थापन का सिद्धांत इवान पेट्रोविच पावलव
48 प्रबलन (पुनर्बलन) का सिद्धांत सी. एल .हल
49 व्यवस्थित व्यवहार का सिद्धांत सी. एल .हल
50 सबलीकरण का सिद्धांत सी. एल .हल
51 संपोषक का सिद्धांत सी. एल .हल
52 चालक/ अंतनोद( प्रणोद) का सिद्धांत सी. एल .हल
53 अधिगम का सूक्ष्म सिद्धांत कोहलर
54  सूझ  या अंतर्दृष्टि का सिद्धांत कोहलर, वर्दीमर
55  गेस्टाल्टवाद संप्रदाय के जनक कोहलर, वर्दीमर
56 क्षेत्रीय सिद्धांत के जनक लेविन
57 तलरूप का सिद्धांत लेविन
58 समूह गतिशीलता संप्रत्यय के प्रतिपादक लेविन
59 सामिप्य संबंधबाद का सिद्धांत गुथरी
60 साइन( चिन्ह) का सिद्धांत टॉलमैन
61 संभावना सिद्धांत के प्रतिपादक टॉलमैन
62 अग्रिम संगठक  प्रतिमान के प्रतिपादक डेविड आश वेल
63 भाषाई सापेक्षता प्रक्कल्पना के प्रतिपादक व्हाफ़
64 मनोविज्ञान के व्यवहारवादी संप्रदाय के जनक जोहन बी. वाटसन
65 अधिगम या व्यवहार सिद्धांत के प्रतिपादक क्लार्क
66 सामाजिक अधिगम सिद्धांत के प्रतिपादक अल्बर्ट बंडूरा
67 पुनरावृति का सिद्धांत स्टैनले हॉल
68 अभिगमन ।सोपानकी के प्रतिपादक गेने
69 विकास के सामाजिक प्रवर्तक एरिकसन
70 प्रोजेक्ट प्रणाली से करके सीखने का सिद्धांत जॉन डयूबी
71 अधिगम मनोविज्ञान का जनक एबिग  हास
72 अभिगमन अवस्थाओं के प्रतिपादक जेरोम ब्रूनर
73 संरचनात्मक अधिगम का सिद्धांत जेरोम ब्रूनर
74 शक्ति मनोविज्ञान का जनक वॉल्फ
75 अधिगम अंतरण का मूल्यों के अभिज्ञान का सिद्धांत बगले
76 भाषा विकास का सिद्धांत नोम चोमस्की
77 मांग- पूर्ति( आवश्यकता पदानुक्रम) का सिद्धांत मैस्लो
78 स्व- यथार्थीकरणअभिप्रेरणा का सिद्धांत मैस्लो
79 आत्मज्ञान का सिद्धांत                   मैस्लो
80 उपलब्धि अभिप्रेरणा का सिद्धांत डेविड सी मेक्लिएड
81 प्रोत्साहन का सिद्धांत बोल्स व काफमैन
82 शीलगुण( विशेषक) सिद्धांत के प्रतिपादक ऑलपोर्ट
83 व्यक्तित्व मापन का मांग सिद्धांत हेनरी मुरे
84 कथानक  बोध परीक्षण विधि के प्रतिपादक मोर्गन व  मुरे
85 प्रासंगिक अंतरबौध  परीक्षण(T.A.T) विधि के प्रतिपादक मोर्गन एवं मुरे
86 बाल -अंतबौद्ध परीक्षण(C.A.T) विधि के प्रतिपादक लियोपोल्ड बैलक
87 रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण (I.B.T)विधि के प्रतिपादक हरमन रोर्शा
88 वाक्य पूर्ति परीक्षण(S.C.T) विधि के प्रतिपादक  पाइन व टेडलर
89 व्यवहार परीक्षण विधि के प्रतिपादक  हॉटशार्न
90 किंडरगार्टन विधि रिटर्न विधि के प्रतिपादक फ्रोबेल
91 खेल प्रणाली के जन्मदाता फ्रोबेल
92 मनोविश्लेषण विधि के जन्मदाता   सिगमंड फ्रायड
93 स्वप्न विश्लेषण विधि के प्रतिपादक सिगमंड फ्रायड
94 प्रोजेक्ट विधि के प्रतिपादक विलियम हेनरी किलपैट्रिक
95 मापनी भेदक विधि के प्रतिपादक एडवर्ड्स वकील पैट्रिक
96 डाल्टन विधि के प्रतिपादक मिस हेलन पार्कहर्स्ट
97 मांटेसरी विधि के प्रतिपादक मैडम मारिया मांटेसरी
98 डेक्रोली विधि के प्रतिपादक ओविड डेक्रोली
99 विनयटीका इकाई विधि के प्रतिपादक कार्लटन 
100 हयूरेस्टिक विधि के प्रतिपादक एच. ई. आर्मस्ट्रांग
101 समाजमिति विधि के प्रतिपादक जे.एल. मोरेनो
102 योग निर्धारण विधि के प्रतिपादक लिकट
103 स्केलोग्राम विधि के प्रतिपादक गैटमैन
104 विभेदन शाब्दिक विधि के प्रतिपादक आसगुड
105 स्वतंत्र शब्द साहचर्य परीक्षण विधि के प्रतिपादक फ्रांसीस गाल्टन
106 स्टैनफोर्ड- बिने स्केल परीक्षण के प्रतिपादक टरमन
107 पोरर्टियस भूल भुलैया परीक्षण के प्रतिपादक एस.डी पोरर्टियस
108 वेशलर- वैल्यू बुद्धि परीक्षण के प्रतिपादक डी.वेशलर
109 आर्मी अल्फा परीक्षण के प्रतिपादक आथर एस. ओटिस
110 आर्मी बीटा परीक्षण के प्रतिपादक आथर एस. ओटिस
111 हिंदुस्तानी बिने  क्रिया परीक्षण के प्रतिपादक सी एच राइस
112 प्राथमिक वर्गीकरण प्रशिक्षण के प्रतिपादक जे.मनरो
113 वंश सूत्र के नियम के प्रतिपादक मेडल
114 बाल अपराध विज्ञान के जनक सीजर लोब्रासो
115 ब्रेल लिपि के प्रतिपादक लुई ब्रेल
116 साहचर्य सिद्धांत के प्रतिपादक एलेग्जेंडर बेन
117 ” सीखने के लिए सीखना’ सिद्धांत के प्रतिपादक हर्लो
118 शरीर रचना का सिद्धांत शेल्डन
119 व्यक्तित्व मापन के जीव सिद्धांत के प्रतिपादक गोल्डस्टीन 

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